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शिक्षा में नवाचार - नई पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य का आधार!

Posted 3 months ago with 326 views

Story by Dr. Bhavesh Pandya (PHD)  •   13 mins read

Overview: यह लेख शिक्षा के महत्व और नवाचारों पर केंद्रित है। इसमें बताया गया है कि शिक्षा कैसे समग्र विकास और युवा सशक्तिकरण में सहायक है। लेख में शिक्षा प्रणाली की चार प्रमुख गतिविधियों और शिक्षा में नवाचारों का विवरण दिया गया है, जैसे कि किताबों के बदले दैनिक पेपर का उपयोग और गणित के पहाड़े का नया तरीका। इसके अतिरिक्त, लेख में ठोस जानकारी और अनुभव के माध्यम से विज्ञान की शिक्षा के नए विचारों का भी उल्लेख है। लेख का उद्देश्य शिक्षा में नवाचारों के माध्यम से बदलाव और सुधार को प्रोत्साहित करना है।

शिक्षा में नवाचार - नई पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य का आधार!
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समग्र विश्व में शिक्षा अनूठा माध्यम हैं। शिक्षा का महत्व बढ़ने के कारण आज युवा हमे शिक्षित दिखाई दे रहा हैं।
शिक्षा के माध्यम से विश्व में हम बदलाव देख रहे हैं। शिक्षा आने वाली पीढ़ी के लिए नए रास्ते तैयार करने के लिए सक्षम हैं। आने वाली पीढ़ी के लिए सबसे उपयोगी आज कोई है तो वो है आज का युवा। पिछले सालों में विश्व बैंक के माध्यम से जो जानकारी सामने आ रही है उसमें कहा गया है की मूलतः सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षा एक मात्र व्यवस्था है जो सफलता प्राप्त कर रही हैं। युवा जो आधुनिक टेक्नोलॉजी का सबसे करीबी उपभोक्ता हैं। युवा आने वाले समय में अगर तय करे कि समाज में कुछ करना है तो वो कर सकते हैं। अगर शिक्षा का सर्वांगीण विकास करना है तो भारत का युवा धन सक्रिय बने वो जरूरी हैं।

जहां तक शिक्षा का सवाल है, उस में मूलतः चार गतिविधियां देखने को मिल रही है, शिक्षा व्यवस्था में शिक्षक की व्यस्तता, विद्यार्थी की व्यस्तता, शिक्षक के साथ विद्यार्थी अथवा सामग्री के साथ विद्यार्थी की व्यस्तता हमें नजर आ रही हैं। प्रारंभिक शिक्षा से लेकर उच्च स्तरीय शिक्षा के लिए को देखते हुए उपरोक्त चार प्रकार से शिक्षा का कार्य हो रहा हैं।

इन चार व्यवस्था के लिए अगर कहा जाए तो एक बात तय है की जब से सीखना ओर सिखाना शुरू हुआ तब से आज तक यही चार रूप हमे देखने में आ रहे हैं। वैदिक परंपरा के समय में सिर्फ श्रवण एवं अनुभव को केंद्र में रखते हुए शिक्षा का काम होता था। आधुनिक समय में इस में ज्यादा फर्क नहीं आया हैं। पहले गुरुजी कथन करते थे और विद्यार्थी श्रवण करते थे। आधुनिकता के नाम पर आज टेलीविजन या मोबाइल सुनाता है और विद्यार्थी सुनते हैं। वो दिखाता है उसे विद्यार्थी देखते हैं। शिक्षा व्यवस्था के किसी देहाती और पिछड़े गांव से लेकर विश्व के समृद्ध शहर में कुछ बाते है जो समान रूप से शिक्षा के लिए अवरोधक हैं। जैसे सभी बच्चे एक समान रूप से नहीं सिख पाते हैं। दूसरी बात भी ऐसी है जिसमें हमें मालूम पड़ता है की कोई बच्चा तेजी से सिखता है तो कोई स्लो यानी धीरे सीखने वाला भी होता हैं। कोई अपने आप भी सिख सकता है तो किसी किसी को सहपाठी का सहयोग आवश्यक हैं। अरे! सीखने वालो में जितनी भिन्नता है उस से शायद अधिक भिन्नता सिखाने वालों में भी पाई जाती हैं। कुछ शिक्षा कर्मी अपने काम को अलग तरीकों से अमलीकृत करते है जिस के माध्यम से उन्हें अपेक्षित परिणाम प्राप्त हो।

शिक्षा प्राप्ति का महत्व उसे प्राप्त करने वाले अभिभावक के माध्यम से परखा जा सकता हैं। आज के समय में जब शिक्षा को केंद्र में रखकर सफलता प्राप्त करने हेतु बहुत कुछ नया हो रहा हैं। इस नए पन को हम अंग्रेजी में एजुकेशनल इनोवेशन और हिंदी में शिक्षा के लिए नव सर्जन या नवाचार के नाम से पहचान रहे हैं।

शिक्षा में नव सर्जन

एक विद्यालय में शिक्षा कर्मी पारंपरिक तरीकों के अलावा कुछ नया कार्य करते है उसे नव सर्जन या शिक्षा में इनोवेशन कहा जाता हैं। कुछ सिखाने हेतु एक चीज को अलग अलग रूप में सीखने वालो के सामने रखना शिक्षा के नवाचार कहा जाता हैं।

जो बात अभिभावक नहीं सीख रहे या नहीं समझ रहे है उस विषय को समझाने हेतु कुछ नए तरीकों को क्लासरूम में अभिभावक के सामने रखना उसे एजुकेशनल इनोवेशन कहा जाता हैं। शिक्षा को अभिभावक के जीवन में वो सफलता दिखाई दे तभी उस नव विचार या नव सर्जन को सफल मान सकते हैं।ñशिक्षा का महत्व बढ़ते हुए शिक्षा के आदान प्रदान के लिए पिछले कुछ सालों में अध्ययन अध्यापन कार्य में नवाचार जो सफल हुए है उस के बारे में यहां थोड़ी जानकारी देना आवश्यक हैं।

किताब के बदले दैनिक पेपर

दैनिक पत्र रोज प्रकाशित होते है। जिस के माध्यम से भाषा,विज्ञान, गणित,पर्यावरण,सामाजिक विज्ञान और अन्य विषय पढ़ाई जा सकते हैं। किताब के बदले सर्व प्रथम भाषा के मूलाक्षरों की पहचान से शुरू करते हुए गणित या विज्ञान पढ़ाया जा सकता हैं। इस नवाचार को सबसे पहले आई.आई. एम अहमदाबाद के प्रोफेसर विजया शेरीचंद ने टीचर्स एस एन ट्रांसफार्मर डॉक्यूमेंट में प्रकाशित किया गया। गुजरात के बनासकांठा में अध्यापक ने एक से पांच कक्षा के बच्चों के लिए इस नव विचार को अमलीकृत किया। वर्ष:२००६ में खोजे गए इस नवाचार के बाद NCERT और देश की भिन्न भिन्न SCERT ने अपने राज्य के पाठ्य पुस्तकों के निर्माण में इस विचार को स्थान दिया गया। इस नवाचार की व्यवस्था को अगर समझे तो दैनिक पत्र की मदद से कक्षा:१ वाला बच्चा मूलाक्षर खोजेगा, उसे पहचानेगा। कक्षा:२ का अभिभावक शब्दों को खोजेगा और अनुलेखन करेगा। कक्षा:३ में अभ्यास करने वाले विद्यार्थी पसंद किए गए शब्द की सहायता से वाक्य का निर्माण करेंगे। ऐसे कक्षा बढ़ेगी और काम बदलेगा। कक्षा:८ में बच्चा पूरी खबर का अनुवाद अन्य भाषा में करे।

इस बात को समज ने हेतु एक ओर उदाहरण भी है कि किसी समाचार पत्र में छपी हुई खबर में किसी में कोई एक मूलाक्षर या शब्द कितनी बार छपा है। बच्चे गिनती करेंगे जो गणित का काम होगा। कोई दो अलग अलग शब्दों की गिनती कर के उसे जोड़ना या घटाना भी करवा सकते हैं। दैनिक पत्र में जिस शहर, राज्य या देश का नाम है उसे मानचित्र के दिखाना ओर इस तरीके से सामाजिक विज्ञान का काम हो सकता हैं। पाठ्य सामग्री के रूप में दैनिक पत्र का उपयोग महत्वपूर्ण रूप से उपयोगी ओर परिणाम लक्षित हैं।

गणित पहाड़े ओर नव विचार

गणित सीखने का हेतु सिर्फ गिनती सीखने के लिए नहीं है। व्यक्ति निर्माण, सहजता, जटिलता को सहजता की ओर बढ़ाना और जीवन व्यवहार में गणित के माध्यम से हर स्थिति को भांपना और रास्ता निकालना संभव हो इस विचार से गणित को प्रारंभिक कक्षा से शिक्षा में रखा जाता हैं। गणित में समानता - भिन्नता, संख्याज्ञान, चार गणितिक प्रक्रिया, गुंजाश,अपूर्णाक एवं भूमिति शामिल हैं। विश्व के किसी भी देश में गणित के पाठ्यक्रम में इतनी बाते ही होती है, जिसे कक्षा के माध्यम से भिन्न स्वरूप से परोसा जाता हैं। हम अवगत है कि प्राथमिक शिक्षा में पहाड़े आवश्यक ओर महत्वपूर्ण इकाई हैं। महाराष्ट्र की शिक्षिका सीमा देशपांडे ने अपनी कक्षा के बच्चों को पहाड़े वर्टिकल नहीं मगर हेरिजॉन्टल रूप में तैयार करवाए।

सीमा अपने बच्चों के साथ पहाड़ों का गान करवाते समय (111)(212) (313) की पेटेंट में (10 1 10) याने हेरिजॉन्टल पहाड़े तैयार करवाती हैं। गणित के माध्यम से समझे तो पहाड़े में (199) तक पहुंचने में नौ तक गिनना होता हैं। जब की हेरिजॉन्टल पहाड़े करवाने से यह स्थान 9 1 9 सीधा आगे आता हैं। अगर 111 से 10 10 100 तक के स्टेप 100 होते हैं। मगर हेरिजॉन्टल तरीके से पहाड़े करवाते है तो सो के बदले 55 स्टेप होते हैं। इसे समाज ने के लिए देखे तो 5*9=45 अगर वर्टिकल है तो पांच का पहाड़ा नव तक गिनना पड़ेगा। मगर हेरिजॉन्टल के माध्यम से 9*5=45 जल्दी आता हैं।

111.....212....313......414
........224....326......428
...............339.....4312

इस रूप में 5*9=45 के बदले 9*5=45 सीखने से पहाड़े कम होने पर भी सो तक काम हो सकता हैं। इसे नव विचार कहते हैं। सभी को मालूम है की 6*5=30 ओर 5*6=30 दोनों एक से 10 तक के पहाड़े में होते हैं। मगर हेरिजॉन्टल में सो के बदले 55 पहाड़े याद करने से काम आसान ओर गिनती तेज होती हैं।

ठोस जानकारी के नव विचार

आज तक हम बच्चों को सीखते है कि पृथ्वी घूमती हैं। मगर कोई इसे घूमती हुई नहीं देख पाता है,तब बच्चे कैसे मान ले कि पृथ्वी घूमती है? अब छोटे बच्चे इस बात को कैसे समझ पाएंगे जो दिख नहीं रहा हैं। इस समस्या के समाधान के लिए राजस्थान के डूंगरपुर डिस्ट्रिक्ट के दिव्यांग शिक्षाकर्मी बकुल परमार ने एक प्रवृत्ति का निर्माण किया। बच्चों के समूह को विद्यालय में पानी की टंकी की परछाई पर एक पेन को रखकर परछाई की सीमा तय करवाई। कुछ देर तक बच्चों के साथ कुछ बातचीत ओर खेल के बाद फिर से पानी की टंकी की परछाई के पास गए। लगभग बीस मिनट के बाद आकर देखा तो पेन जहा रखती उस से परछाई थोड़ी आगे निकल चुकी थी। अब पेन रखी थी वहां से परछाई जितनी दूर दिखाई दी वहां तक मापन पट्टी से उसे नापा गया। उस बीस मिनट में पृथ्वी गुमी वो बात को बच्चे समज पाए।

भिन्न वातावर में वजन कम या ज्यादा होता हैं। बच्चे इस बात को रट्टा लगाकर तैयार करते है। इस बात को समझाने के लिए हैदराबाद के गोलकुंडा स्थित सरकारी विद्यालय के अध्यापक आर. एम. एस बालू ने एक प्रवृत्ति का आयोजन किया। इस प्रवृत्ति में उन्होंने स्प्रिंग वाला वैट स्केलर लिया । एक पत्थर को धागे से बांधकर उस का वजन किया गया। बाद में उस पत्थर को पानी में डूबाकर रखा और उस का वजन किया। जो पहले से कम हुआ। बच्चों को समझाया गया की पहले पत्थर का वजन गुरुत्वाकर्षण के कारण चारसों ग्राम था। अब पत्थर के आसपास पानी है तो वजन करीब करीब आधा हो गया। बाद में गंदे पानी में रखकर, पेट्रोल या डीजल में रखकर ओर बिन उपयोगी मोटर गैरेज के ऑयल में डूबाकर पत्थर का वजन किया गया। हर बार वजन में अंतर दिखाई देने लगा। विज्ञान में चंद्र के ऊपर जाकर चीज का वजन कम होता है पढ़ने वाले बच्चे रट्टा लगाकर याद करते है। जो इन्हें यहां सहज रूप से अनुभव के माध्यम से प्राप्त हुआ।

भारत में शिक्षा के नव विचारों को खोजने की शुरुआत 1992 से शुरू हुई। तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह की अध्यक्षता में एक कमिटी का गठन हुआ। यह कमिटी शिक्षा और शिक्षा के नवाचार के लिए काम करती थी। प्रो. विजया शेरीचंद ने लंबे समय से इस काम को समग्र देश एवं दुनिया के सामने रखा हैं। शिक्षा में नव विचार की बात जब जब आएगी तब तब प्रोफेसर विजया शेरीचंद को नव सर्जक एवं नव विचारक को खोजने का मिशन कार्य करने के लिए उन्हें याद किया जाएगा। शिक्षा एक विस्तृत क्षेत्र है, जिस में अनेक इनोवेशन हुए है ओर होते रहेंगे। मेरा भी प्रयास रहेगा कि आप को ऐसे नव विचारों से अवगत करवाता रहूं। आप भी शिक्षा से जुड़ी किसी व्यवस्था की कोई समस्या से पीड़ित है तो कॉमेंट करे जिस से अगली बार आप की समस्या से जुड़े नव विचारों को लिखने का मुझे अवसर मिले।

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