Overview: कृषि क्षेत्र में नई टेक्नोलोजी को अपनाने में आने वाली चुनौतियों और उनके समाधान के विभिन्न पहलुओं को समझने पर यह स्पष्टरूप से कह सकते है कि कृषि में टेक्नोलोजी के विकास को सफल बनाने के लिए न केवल उच्च-स्तरीय इनोवेशन की आवश्यकता है, बल्कि उसे किसानों की आवश्यकताओं, भौगोलिक और आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप ढालने की भी जरूरत है। इसके लिए टेक्नोलोजी निर्माताओं, किसानों और सरकार के बीच बेहतर समन्वय आवश्यक है ताकि आधुनिक टेक्नोलोजी को अधिक सरल, सुलभ और प्रभावी बनाया जा सके। इन समस्याओं पर ध्यान देकर ही हम कृषि को सशक्त और अधिक उत्पादक बना सकते हैं।
इसी विषय के पहले ब्लॉग में कृषि और तकनीक (टेक्नोलोजी) के बीच की छूटती कड़ियों के बारे में बताया था।कृषि से जुड़े नए टेकनिकल संशोधन कई बार उतने कारगर साबित क्यों नहीं होते, या फिर किसान उन्हें क्यों नहीं अपना पाते, यह समझने के लिए टेक्नोलोजी निर्माण के महत्वपूर्ण पहलुओं को जानना और समझना बेहद जरूरी है। टेक्नोलोजी निर्माण के हर स्तर पर आने वाली विभिन्न समस्याओं और उनके समाधान के लिए तकनीकी विशेषज्ञों के साथ हुई चर्चा और अलग अलग संस्थानों के साथ काम के दौरान के मेरे अनुभव को यहाँ लिखने का प्रयास कर रही हुं।
इसी लेखका पहला भाग पढ़ने के लिये नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करे। https://wetheyuva.com/agriculture-and-technology-important-links-of-development-and-modern-life-1
कृषि के लिए नई टेक्नोलोजी विकसित करते समय कंपनियों और इंजीनियरों को अक्सर कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इंजीनियरों की चिंताएँ सिर्फ तकनीकी नहीं होतीं, बल्कि वे कृषि से जुड़ी जरूरतों, पर्यावरणीय परिस्थितियों और किसानों की आर्थिक स्थिति से भी जुड़ी होती हैं। कुछ प्रमुख समस्याओं को मैने यहां शामिल करने का प्रयास किया है।ज्यादातर किसान पीढ़ी दर पीढ़ी से चल रही कृषि पद्धति अपनाते है और उनके पास किसी भी प्रकार माहिती दर्ज नहीं होती है जब की टेकनिकल संशोधनों के लिए सटीक और नियमित रूप से डेटा की आवश्यकता होती है, जो किसानों के पास उपलब्ध नहीं होता, और यदि हो भी तो वह कितना सटीक होगा यह कहना मुश्किल है। यह डेटा सामान्यत: प्रदेश की भौगोलिक स्थिति, मिट्टी के प्रकार, उसकी गुणवत्ता, मौसम, और फसलों के साथ जुड़ा होता है। अब यदि किसी किसान से इस प्रकार का डेटा मिल भी जाए तो वह उस प्रदेश तक सीमित होता है उसके आधार पर दूसरे प्रदेश की स्थिति के लिए कोई भी सक्रिय पर आधारित होता है। अब जब डेटा सटीक रूप से नहीं मिलता, तो इसका सीधा असर इनोवेशन की सटीकता पर पड़ता है।
टेक्नोलोजी बहुत जल्दी विकसित हो रही है और उसके लिए अच्छे इंटरनेट की जरूरत होती है, और यहां काफी ऐसे ग्रामीण इलाके है जहा इंटरनेट की अच्छी सुविधाएं उपलब्ध नहीं है ऐसे में IoT और AI आधारित संशोधने वहा पर लागू करने में कठिनाई होती है। कई बार ऐसा भी होता है की किसानों द्वारा उपयोग किए जाने वाले कृषि उपकरण पीढ़ी दर पीढ़ी से उपयुक्त में ले रहे होते है जिनके के साथ नई टेक्नोलोजी को जोड़ना कठिन होता है, क्योंकि सभी उपकरण नई तकनीक के साथ मेल नहीं खाते।
विभिन्न परिस्थितियों के लिए कस्टमाइज टेक्नोलोजी विकसित करने की जरूरत पड़ती है, क्योंकि हर क्षेत्र की जमीन, जलवायु, पानी और फसलें अलग-अलग होती हैं, जिसके कारण एक ही प्रकार की टेकनोलोजी हर क्षेत्र के लिए उपयोगी नहीं होती। इसलिए इसे हर परिस्थिति और क्षेत्र के अनुसार अनुकूलित करने में काफी मेहनत लगती है और सटीकता भी आवश्यक होती है।
कई किसानों को टेक्नोलोजी की पर्याप्त जानकारी नहीं होती, इसलिए वे इसका उपयोग करने में हिचकिचाते हैं। इसके समाधान के लिए तकनीक निर्माताओं की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वे तकनीक को सरल, बहुभाषी और किसानों के लिए उपयोगी बनाएं। इसके साथ-साथ किसानों को तकनीक के उपयोग से होने वाले लाभ भी विस्तार से समझाना जरूरी होता है।
किसान कठिन परिस्थितियों और प्रतिकूल वातावरण में भी कार्य करते हैं, और इसलिए कृषि उपकरण टिकाऊ और सक्षम होने चाहिए। इसके साथ जुड़ी नई तकनीक भी कठोर वातावरण में काम करने में सक्षम होनी चाहिए, जो आसान नहीं होता।
नई टेक्नोलोजी, खासकर IoT, डेटा एनालिटिक्स और रोबोटिक्स जैसी बहुत महंगी होती है, जिससे छोटे किसानों के लिए ऐसे टेकनिकल संशोधन खरीदना मुश्किल हो जाता है। यदि ऐसे संशोधन के लिए कोई वित्तीय सहायता योजना न हो, तो किसानों की समस्या और तकनीक निर्माताओं की समस्या भी बढ़ जाती है।
क्लाइमेट चेंज के कारण अचानक मौसम में परिवर्तन आना, सूखा या अत्यधिक बारिश होना या बिन मौसम की बारिश जैसी स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं, जिनका बुरा असर टेकनिकल संशोधनों पर पड़ता है, जिससे किसानों को फसल में तो नुकसान होता ही है पर साथ में टेकनिकल संशोधन को भी नुकसान होता है ऐसे में संशोधन को सही कर के फिर से लगाने के लिए समय और धन खर्च होता है, जो ना तो किसान के लिए संभव होता है, न कंपनी के लिए।
ग्राम्य विस्तार में उपकरणों और साधनों की देखभाल और रखरखाव की अच्छी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं होतीं, जिससे वे लंबे समय तक नहीं चल पाते जिससे किसान को वो टिकाऊ नही लगते है ।
कृषि क्षेत्र में लागू नीतियों और मानकों के अनुसार नई टेक्नोलोजी को मान्यता मिलने की प्रक्रिया में कभी-कभी बहुत समय लग जाता है, जिससे टेक्नोलोजी निर्धारित याने की मौसम फसल के मुताबिक सही समय पर किसानों तक नहीं पहुँच पाती और उसका सही समय पर उपयोग नहीं होता जिस से उसके उपयोग से होने वाले लाभ का प्रभाव कम हो जाता है जो कंपनी के लिए अवरोध का कार्य करता है।
इन सभी के साथ-साथ टेक्नोलोजी के उपयोग के लिए किसानों की सहमति और सहयोग मिलना भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है जो कई बार पूर्णतः नहीं मिल पाता।
आधुनिक कृषि को टेक्नोलोजी के साथ जोडना अत्यंत महत्वपूर्ण है इसीलिए टेक्नोलोजी विकसित करने से उसके उपयोग करने में जो समस्याएं आती है उनका समाधान खोजना और उन्हे लागू करना सही मायने में कृषि को सरल और संपन्न करेगा। आपके विचार से इनके समाधान क्या हो सकते है ? आपके सुझाव हमे इस दिशा में आगे बढ़ने में सहायक होंगे।
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